प्रातहुतै मुख पांन दये नहि, रैंनि जगी अंखिया अनुरागी।
याहीतै मैं पठई सबही मिलि, बोलन साथ बडी बडभागी॥
चालौ मिलौ उठिकैं हितसौं, उनकी अैसैं चाहि रही उरझागी।
चक्रत चाहि चहूंदिसितैं, अवसेरि ज्यौं चंद-चकोरन लागी॥