रावरी बातैं सुभायकैं भायसौं, चाहिकै भाय कहूं जी चढैंगी।

ता पर आवन यौं तमको, मग फैलिकैं चांदनी कुंज मढैंगी॥

मोही महा डर है धौं बडौ, पढै मंत्रन जंत्र अनेक बढैंगी।

राधिकाकी वे बड़ी-बड़ी-आंखैं, गडी तो गडी वे काढी कढैंगी॥

स्रोत
  • पोथी : नेहतरंग ,
  • संपादक : श्रीरामप्रसाद दाधीच ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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