कहै सब हद गहै सब हद, बेहद नहीं उनमान मैं आवै।

गुडी कौ उढ़ान डोरी कै प्रवान, हो चक्रिहुं डोरि कै वोरि व्है आवै॥

तीर कौ जान जहां लग पान, जुदैंद कौ गौन पैड़ दस पावै।

तरंग की चाल जहां लग पाल, हो रज्जब डागुल दौर का धावै॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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