उठी उर जागि बिरह की आगि, गई मन लागि भई तनि कारी।
पीर प्रचंड भई नवखंड जु, बीचि बिहंडि गई सुधि सारी॥
भई चकचाल कहै बिकराल, नहीं कछु हाल सु लाज बिसारी।
हो रज्जब रोइ कहै पिय जोइ, दुखी अति होइ बियोग की मारी॥