हंस स्वरूप ह्वै मोती चुग्या हरि, भंवर स्वरूप ह्वै कंवल लुभाया।
मीन स्वरूप पीया रस अमृत, ह्वै मरजीवा जु सिघ समाया।
चातृग रुप रह्या निज वासुर, होइ चकोर जु चित्त लगाया।
हो छीतर भांति अनेक भज्या हरि, दादुजी पीव सु प्रेम बढ़ाया॥