दुखी दिन रात परी बिललात, कहूं किस बात जनम की जाती।
जु मांड के सुख भये सब दुख, बिना पीय मुख बिगसत छाती॥
गई सब बैस न आये नरेस, जु याही अंदेस परी उर काती।
हो रज्जब कंत सु लेत हैं अंत, जु हेत सो हंत जरी जिये जाती॥