वीस हजार चली सविसी नृप, बंध परे तुम ध्यान धरायौ।
मार जुरासिंध नंद के नंद, हजार नृवंद करे जस पायौ।
भूप बुलाय सबै पंडवां जुग, संत जीमाय के संख बजायौ।
ईसरदास की बेर दयानिध, नींद लगी कन आळस आयौ॥