हौ सुगणा किरतार धनी कबु दास को औगुण चित्त न लायौ।
कोटि अनंत के काज किये, सरनागति को अति तोल वधायौ।
हो रन बंद सो बंद वेहे निज दासन को तुम दास कहायौ।
ईसरदास की बेर दयानिध, नींद लगी कन आळस आयौ॥