वृज्ज वचाय लिये कर धार के, विप्र छदांमा को रोर मिटायौ।
जैर को इम्रत कीध मीरां हित, संत घना जु को खेत नेपायौ।
नार जीवाय दई जयदेव की, ऊधव कूं निज ग्यान सुनायौ।
ईसरदास की बेर दयानिध, नींद लगी कन आळस आयौ॥