ब्याध कहा पुन जेण करे, मृग मार फिरे तर छांह सु आयौ।
अंत भयौ दुख बौत थयौ, सुख ,रांम कयो सुण आप कहायौ।
ताह उबारिय त्रास निवारिय, कुंठ मही सुखवास दिरायौ।
ईसरदास की बेर दयानिध, नींद लगी कन आळस आयौ॥