अधर धरा सूं रंग अधर धरा सूं संग,

अधर धरा सूं निज किया हित प्यार जू।

अधर धरा सूं लीन अधर धरा सूं दीन,

अधर धरा है सोई जप्या इकतार जू।

अधर धरा सूं रत अधर धरा सूं मत,

अधर धरा सूं रस पीया इक सार जू।

हो छीतर अधर धरा सूं जागि अधर धरा सूं लागि,

अधर धरा सूं जिन दादू भये पार जू॥

स्रोत
  • पोथी : पंचामृत ,
  • सिरजक : छीतरदास ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा,दादू महाविद्यालय मोती डूंगरी रोड़, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम