जद सूं सुणी छै कै अबकै गोबर्‌या कै तांईं टिकट मलैगौ गोबर्‌यो मगन छै। आणंद र्‌यो छै। जठीं बी जावै छै; छा पाणी अर मान-मनवार होवै छै। गोबर्‌या जठीं बी जावै छै ‘गोबर्‌या जी पधारो’ ‘गोबरीलाल जी बराजो’ होबा लाग जावै छै। नत-पांतरै नूता आवै छै। अेक दन पटेल जी कै, तो दूसरै दिन पटवारी जी कै; अेक दन चौधरीजी कै, तो दूसरे दन सेठ जी के। नत-पांतरै का जीमण हो र्‌या छै। गोबर्‌यो लाडो बण र्‌यो छै। लोग-बाग बंदोरा दे र्‌या छै। गोबर्‌या की लार-लार गोबर्‌या का म्हां जस्या भायला बी मगन हो र्‌या छै। लोग-बाग गोबर्‌या सूं बात करबा सूं फैली म्हांसूं पूछै छै, ‘क्यूं जी आजकाल कस्योक मूड छै?’

गोबर्‌यो रात्यूं-रात गोबरीलाल होग्यो, अर म्हां झांकता रै ग्या। पाल्टी को गांव प्रमुख तो म्हूं छो, अर टिकट मल ग्यो गोबर्‌या कै तांईं। मन पै सांप तो म्हारै बी लोट र्‌या छै, पण प्रमुख होबा सूं गोबर्‌या की लार लागणो पड़ र्‌यो छै। कस खाऊं छूं, रोस करूं छूं, हाई कमान का तांई लाख-लाख गाळ्यां द्यूं छूं, पण गोबर्‌या की लार-लार चालूं छूं। जमाना की नाईं म्हूं बी गोबर्‌या सूं गोबरीलाल खै’र बात करूं छूं। फरक अतनो छै कै गांव कै बेई गोबर्‌यो अब गोबरीलालजी छै अर म्हारै बेई गोबरीलाल। म्हूं बी खदीं जी-कारो लगाबा की सोचूं छूं, पण प्रमुख होबा सूं आपणो बड़प्पण बणायो राखणी पड़ै छै।

परस्यूं रात में बच्यार आयो कै गोबर्‌या कै ताईं टिकट कस्यां मलग्यो। म्हूं रात भर सोचबो कर्‌यो, पण कोई सुराग नै मल्यो। नींद बी नै आई अर बात बी बखरगी। गांव प्रमुख तो म्हूं अर टिकट गोबर्‌या कै तांईं?

हाई कमान सूं शिकायत करबा को बी बच्यार आयो, पण या सोच’र छानमून रै ग्यो या रैणो पड़्यो कै गोबर्‌या कैं ताईं खबर लागैगी तो नाराज हो ज्यागो। गांव प्रमुख होतां सतां बी म्हारै तांई गोबर्‌या की राजी-नाराजी को ध्यान राखणो पड़ै छै।

पाल्टी का दूसरा लोगां नै बी बार-बार योजना बणायी, मतो मल्यो कै गोबर्‌या कै तांईं टिकट देबा पै नाराजी दखाबा राजधानी चालां। पण सबका मन में कांई-नै-कांई चोर है। कोई सोचै छै कै हाईकमान नाराज हो ज्यागी। तो बी जणो-जणो ईं बात को पतो लगाबा की कोसीस कर र्‌यो छै कै गोबर्‌या कै ताईं टिकट मलबा को असली कारण कांई छै। उस्यां ऊपर सूं तोल पड़ी छै कै हाईकमान नै अबकै केवळ ईमानदार आदमी कै ताईं टिकट देबा की सोची छै। खदीं पतो चाल्यो कै गोबर्‌या की काकी का मामा का साळा नै ऊंकै तांईं टिकट द्वायो छै।

गोबर्‌या की काकी का मामा को साळो हाईकमान को खास आदमी छै। गोबर्‌या को लालण-पाळण काकी नै कर्‌यो छै। काकी नै मामा सूं सफारस करवा’र ऊंका साळा सूं गोबर्‌या कै ताईं टिकट द्वायो छै।

अेक दिन या बी बात चाली छी कै गोबर्‌या कै ताईं छानमून रैबा को ईनाम मल्यो छै। जद सब लोग हाईकमान की बदनामी कर र्‌या छा तो गोबर्‌यो छानमून छो। हाईकमान नै घणां घोटाळा कर्‌या, पण गोबर्‌यां नै होठ सीं ल्या। ईं बात को ईनाम गोबर्‌या कै तांईं टिकट सूं मल्यो छै।अेक जणो तो अतनी बात खै ग्यो कै गोबर्‌या कै जीतबा का पूरा-पूरा आसार छै। जीत की पक्की आसा छै। जब सूं जीतबा का चान्स बण्या छै, गोबर्‌या कै आगै-पाछै लोग लाग र्‌या छै। लुगायां गोबर्‌या की काकी का गीत गावै छै अर मरद काका का गुण-गान करै छै।

चुणाव जीतबा की बात तो या छै कै खद मरैगी सासू अर खद आवैगा आंसू। पण हाळ तो मगन हो र्‌या छै। विरोध की ताकत तोल र्‌या छै। जणा-जणा का मूंढा पै अेक बात छै—‘गोबर्‌या कै खिलाफ जो बी चुणाव लड़ैगो जबरदस्त पल्टी खावैगो। क्यूंकै गोबर्‌यो तो गोबर्‌यो छै।’

‘खदीं कोई सूं करड़ो नै बोल्यो, फेर गोबर्‌यो कस्यां हारैगो?’

‘कोई की अेक कोडी बी नै खाई तो हारबा को सवाल नै उठै।’

‘धरम-करम में सबसै आगै छै, अस्या आदमी कै तांईं कुण रोक सकै छै।’

‘गांव की सेवा का सब काम घर का काम सूं ज्यादा करै छै। गोबर्‌यो जरूर जीतैगो।’

गांव का लोगां नै सोच ली कै भलांई भीडू होवै कै पराया सब लोग गोबर्‌या कै तांईं बोट दैंगां। धरम-करम करबा हाळा नै सोच ली कै बेईमान लोगां सूं पिंड छुड़ाबा बेई गोबर्‌या नै ईं बोट देगां। धाकड़ां अर करसाणा नै सोच ली कै बोट धाकड़ अर करसा गोबर्‌या कै ताईं देणा छै।

जीत की पक्की आस बण गी, गोबर्‌यो देखतां देखतां गोबरीलालजी सूं अेम.अेल.अे. साब बणबा की आडी चाल द्‌यो। च्यारूं मेर ‘जीतैगा भई जीतैगा गोबरीलाल जी जीतैगा।’

‘जो हमसे टकरायेगा’, ‘चूर-चूर हो जायेगा’ का नारा लागबा लाग ग्या।

एक भायो बोल्यो, ‘अरै यार यो गोबरीलाल नांव आछ्यो नै लागै। नांव बदळो। गांव में मतो-मतायो बच्यार कर्‌यो तो अेक नांव सामै आयो। नांव छो जी. अेल.। अस्यो जोरदार अंगरेजी नांव सुण्यो तो लोग उछळ ग्या। गोबरीलालजी तत्काल जी.अेल. साब होग्या।

अचानक खबर आई कै गोबर्‌या को टिकट केन्सिल हो ग्यो। लोग सकता में आग्या। विरोधी खुश होग्या। तोल पाड़बा की कोसीस करी कै टिकट कस्यां केन्सिल होयो तो पतो चाल्यो कै हाईकमान की चिट्ठी आई छै— ‘तुम बिना जीते ही इतने बड़े आदमी बन गये कि गोबर्‌या से गोबरीलाल और गोबरीलाल से जी.अेल. बन गये। यह पार्टी-विरोधी काम है। इसलिए निश्चय किया गया है कि तुम्हारे विरोध में खड़े हमारी ही पार्टी के नाराज उम्मीदवार को पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार घोषित किया जाए। हाईकमान अन्य किसी को बड़ा बनता नहीं देख सकता।’

देखतां-ई-देखतां लोग सारी बातां भूल ग्या। पार्टी का केन्डीडेट की लार लाग ग्या। गोबर्‌या की काकी को मान-सम्मान घट ग्यो। म्हूं गोबर्‌या सूं आंख बचाबा लाग ग्यो। गोबर्‌यो पाछो जी.अेल. सूं गोबरीलाल अर गोबरीलाल सूं गोबर्‌यो होग्यो। ऊं की हालत वा होगी ज्या हाळत रेल-मोटर में बना टिकट चालबा-हाळा की होवै छै।

स्रोत
  • पोथी : हाड़ौती अंचल को राजस्थानी गद्य ,
  • सिरजक : प्रेमजी प्रेम ,
  • संपादक : कन्हैयालाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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