सुरभी दीनो स्राप, पाप तिको भुगतण पड़यो।

एक रिछक हर आप, सदा बचायी सांवरा॥

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : बंगाल-हिंदी-मंडल, कलकत्ता