सूमां रै घर सोय, हेम तणौ भाखर हुवै।
काज न आवै कोय, मिनखां बीजा, मोतिया॥
हे मोतिया! यदि कृपण व्यक्ति के घर सोने का पर्वत भी हो, तो भी वह दूसरे मनुष्यों के कोई काम नही आता। कंजूस किसी को कुछ देता ही नहीं है।