सारौ मिलग्यौ साथ, कूड़ बिचारी कैरवां।

हरि! इज्जत रै हाथ, सह मिल घालै सांवरा॥

भावार्थ:- सबके सब इस दुष्कर्म में प्रवृत्त हो गये, कौरवों ने बुरा विचार किया। हे हरि! हे श्याम। ये सब मिलकर मेरी इज्जत पर हाथ डाल रहे है।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : बंगाल-हिंदी-मंडल, कलकत्ता
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