द्रौपद दक्काळाह, दुसट-सभा-बिच दाखवै।

लायौ नंदलालाह, चीर दुसाला चौगणा॥

भवार्थ:- द्रौपदी दुष्टों की सभा में ललकार के वचन कह रही है। उनको सुनकर नन्द का लाल चौगने चीर और दुशाले ले आया।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
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