रळियौ जळ सुरराज, धर अंबर इक धार सूं।
करण अभय ब्रज काज, गिरि नख धार्यौ कान्हड़ा॥
भावार्थ:- जब इन्द्र ने आसमान से पृथ्वी तक निरवच्छित्र (मूसलाधार) वर्षा की तो हे कृष्ण! व्रज को अभय करने के निमित तूने गोवर्धन पर्वत को अपने नख पर धारण कर लिया था।