पंड में मोटा पाप, पथ वैहतां बाथां पड़ै।

अळगा रहियै आप, मैला मिनखां मोतिया॥

हे मोतिया! जो अपने अंतःकरण में बहुत पाप रखते है और राह चलते हर किसी से उलझ पड़ते हैं ऐसे छल-कपट भरे कुटिल स्वभाव और मन के मैले मनुष्यों से आप दूर ही रहें।

स्रोत
  • पोथी : मोतिया रा सोरठा ,
  • सिरजक : रायसिंह सांदू ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : श्री कृष्ण-रुक्मिणी प्रकाशन, जोधपुर
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