हार्यौ खैचणहार, हर देतो हार्यौ नहीं।
वध्यो चीर विसतार, बाँवन हाथां वैत ज्यूं॥
भावार्थ:- खींचने वाला थक गया पर भगवान देते हुए नहीं थका। चीर का विस्तार बढ़ चला मानो भगवान वामन अपने हाथों से उसे नाप रहे हैं।