धरती पड़्यो ढिंगास, अंबर अंबर सूं अड़्यो।

आयो पूरण आस, सही बजाजी साँवरो॥

भावार्थ:- धरती पर ढेर लग गया। कपड़े का ढेर आकाश से जा लगा। सच्चा बजाज सांवरा आशापूर्ण करने के लिए गया।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
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