लाखा ग्रह री लाय, तें पंडव राख्या दिन।

बड़ा किया बन मांह, साथ छोडयौ सांवरा॥

भावार्थ:- उस दिन लाक्षागृह की अग्रि से तूने पाण्डवों की रक्षा की। बन में पाल पोस कर उन्हें बड़ा किया। हे सांवरे! तूने कभी उनका साथ नहीं छोड़ा।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
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