खींचो खींचणहार, मन धोको राखे मती।

समपै सरजणहार, सही बजाजी सांवरो॥

भावार्थ:- हे खींचने वाले। खींच ले। मन में यह धोखा रख कि मैंने यथेच्छ खींचा नहीं। देने वाला सच्चा बजाज सृष्टिकर्ता भगवान् देगा।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
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