द्रौपद हेलौ देह, वेगौ वसुदेव रा।

लाज राख जस लेह, लाज गियां व्रद लाजसी॥

भावार्थ:- द्रौपदी पुकारती है कि हे वसुदेव के पुत्र! शीघ्र आओ। मेरी लज्जा की रक्षा करके यश लो। मेरी लज्जा जाने से तुम्हारे ही विरुद्ध की हँसी होगी।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : बंगाल-हिंदी-मंडल, कलकत्ता
जुड़्योड़ा विसै