तैं अहल्या तारीह, सिला हुती पति स्राप सूं।

वरती मो वारीह, सोवै जागै सांवरा॥

भावार्थ:- जो अहल्या पति के शाप से शिला हो गई थी, उसे तूने तार दिया था। मेरी बारी बीत चली। हे सांवरे। तूं सो रहा है या जगवा है?

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
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