होय सभा हमगीर, दुय हाथां खेंचै दुसट।
चल्यौ पुराणौ चीर, सिर सूं चाल्यौ सांवरा॥
भावार्थ:-सभा में जोरदार होकर दुष्ट दु:शासन दोनों हाथों से द्रौपदी का चीर खींचने लगा। हे सांवरे! यह जीर्ण शीर्ण पुराना वस्त्र सिर से अलग हो रहा है।