द्रोपत दुखियारीह, पूकारी अबळापणै।

मदती हर म्हारीह, करणाकर करस्यो कराँ॥

भवार्थ:- दुखियारी द्रौपदी ने अबला होने के कारण पुकार की। हे हरि! हे करुणाकार! मेरी मदद कब करोगे?

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
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