धीगां देवै ध्यान, रांकां सूं रूठो फिरै।

पासे नह परधान, समझावै कुण सांवरा॥

भावार्थ:- हे साँवरे! जो जबरदस्त है उन पर तो तू ध्यान देता है और जो गरीब हैं, उनसे रूठा फिरता है पास में तुम्हारे कोई मंत्री भी तो नहीं है, तुम्हें समझावे भी तो कौन?

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
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