गज नै ग्रहियौ ग्राह, ते सहाय हुय तारियौ।

वारी मो बैराह, बैठौ व्हे वसुदेव रा॥

भावार्थ:- हे वसुदेव के पुत्र! जब ग्राह ने हाथी को पकड़ लिया था तब तुमने ही सहायक होकर उसका। उद्धार किया था। अब जब मेरी बारी आई तभी बहरे होकर कैसे बैठ गये।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
जुड़्योड़ा विसै