सुरभी दीनो स्राप, पाप तिको भुगतण पड़्यो।

एक रिछक हर आप, सदा बचायी सांवरा॥

भावार्थ:- गाय ने जो शाप दिया उसका फल भोगना पड़ा। हे हरि! एक आप ही रक्षक है। आपने सदा पहले रक्षा की है।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
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