मो मन पड़ियौ मोच, आव कह्यां आयौ नहीं।

साड़ी रौ नहँ सोच, सोच विरद रौ सांवरा॥

भावार्थ:- ‘आओ’ कहने पर तुम नहीं आये, इससे मेरे मन को बड़ी ठेस पहुँची है। हे श्याम! मुझे अपनी साड़ी की चिन्ता नहीं है, मुझे तुम्हार विरुद्ध की ही चिन्ता हो रही है।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
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