चित में दुस्ट कुचाव, निलज्ज लायौ अठै।

अब गिरधर झट आव, साय करण नै सांवरा॥

भावार्थ:- इस दुष्ट के चित में बुरा चाव है और यह निर्लज्ज मुझे यहाँ ले आया है। हे गिरिधर! हे साँवरे! सहायता करने के लिए अब शीघ्र ही आ।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
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