चिंता खोटी मार, रह रह बाळै रात दिन।
बाळै एक ही बार, चिता बिचारी, चकरिया॥
हे चकरिया, चिंता की चोट अत्यंत दुखदाई होती है, जो रह-रहकर रात-दिन (अंत:करण को) जलाती रहती है। इससे तो बिचारी चिता अच्छी, जो एक ही बार में (शरीर को) जला देती है।