तन मो तिल तेतोह, आज सभा मझ ऊघड़ै।
हर-पंडव हेतोह, हूँ जाणूँ होतो नहीं॥
भावार्थ:- आज इस सभा के बीच यदि मेरा शरीर तिल भर भी बेपर्दा हो गया तो मैं समझूंगी कि हरि और पाण्डवों में कभी प्रेम था ही नहीं।