अब छोगाळा ऊठ, काळा तूं प्रतपाल कर।

पांचाळी री पूठ, चढ रखवाळी चतुरभुज॥

भावार्थ:- हे छोगे वाले देव! हे कृष्ण! तू अब उठ और रक्षा कर। हे चतुर्भुज देव! द्रौपदी की पीठ पर रक्षार्थ आ।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
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