उदक पिंयाळां नीपजै, सीस मुकट जळ सीर।
आसोज मास उजाळ पंख, हवदे आवै हीर।
शंख पंचायण सायरां, सुरियां ओदर खीर।
जिण पावस पैदा हुवै, माणक मोती हीर।
बिरखा माणै बादळी, सायर बूंद सधीर।
तिया हुवै तो पदमणी, पुरख हुवै तो बीर।
राजा हुवै तो छतरपति, जोगेसर मन धीर।
कंचन घात कपासिया, अेराकी केंकाण।
धुर खांचण धोरी बड़ा, पारस जात पखाण।
हंस अनड़ अेरापति, ब्राह्मण वेद वियास।
खड़ मूळी, औखध घणा, घासां मांहि घास।
चंपवा मरवा केवड़ा, उणरी वास सुवास।
पाणी मांही नीपजै, मेवै मांहि मिठास।
नीच नरां ऊंची अकल, उण पाणी पैदास।
मांगण मुख पाणी चवै, दाता सूंप्यो दान।
मिण मुगटां किस्तूरी कुरंगां, फळ सेवासूं पाइये बुध उत्तम संगा।
सरबंदर केसर कंवळ, धरती ओदर घात।
हर लिखिया देवो कहै, जळरी इतरी जात॥