हर हर नांव चितार, आळस निंदरा आणो।

लेतां हर रो नांव, किसड़ो लागै नाणों।

काया कंवळ रो फूल, लाग पवन कुमलाणों।

ओदरियै रा कवल चितार, जीव थारो कै’रे ठिकाणों।

जिवड़ो हाटेहाट, परहट जाय बिकाणों।

दरिया रस्तो छोड, ऊजड़ कांय बेवाणों।

हिवड़ै रो आंधो लोग, खूंटै बांध कांई ताणो।

ईख आम नारेळ, चाख चूस पितवाणों।

फळी जै’र री बेल, दाणूं देख लुभाणों।

महमड़ बाजा वाय, दाणू मना गरबाणों।

कर जोगी रो रूप, राम घर अलख जगाणों।

भर मोत्यां सूं थाळ, सतवंती पोख्यो दाणूं।

लोप्यां सत री कार, ले उडियो असराणूं।

हणवंत मारी हाक, कूद चढ्यो असमाणूं।

हणवंत लियो बुलाय, लिख पोथी परवाणूं।

सूतो मास छै नींद, कुंभकरण बळ दाणूं।

छोड्या वानर रीछ, सेना रो अंत जाणूं।

लूंट्यो लंका रो राज, संमदा बीच पियाणूं।

दस माथा भुज बीस, खिलता कियो खळिहाणूं।

राणै रावण मार, लंका रो राज गमाणूं।

हर सूं बाद हलाय, गयो लंकापत राणूं।

दियो बभिखण राज, गुरु कियो मन भाणूं।

‘देवो’ कह कर जोड़, हर रै हुकम हलाणो॥

स्रोत
  • पोथी : मरु-भारती (त्रैमासिक) जनवरी ,
  • सिरजक : सिद्ध देवोजी के सबद : सूर्यशंकर पारीक ,
  • संपादक : बसंतलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिड़ला एजूकेशन ट्रस्ट, पिलानी (राजस्थान)
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