बाणी बरसै सबद सुहावे, कनरस भरि-भरि हरिरस पावे।

हरि भगता नें भावे॥

साध सीप संसार समंदा, तामै लिपतन थावे।

स्वाति बूँद सूं हरिरस बरसै, मन मोती होइ आवे॥

रूप बिरप बाबा की बाड़ी, केला भेला ढाँई।

काया केलि में हरिरस बरसै, ह्वै कपूर ता माँही॥

डूँगर हरिया सरवर भरिया, नीर निंवाणा सरिया।

फूली-फूली पृथमी सगली, बाबै आनंद करिया॥

दादुर मोर पपीहा बोलै, और जलचरा जीवे।

बखना बाणी हरि रस बरसै, साध सवाया पीवे॥

स्रोत
  • पोथी : बखना जी की वाणी ,
  • सिरजक : बखना जी ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : लक्ष्मीराम ट्रस्ट, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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