जबलग जीवै जीतबा, हर सूं प्रीत हलाण।
गोमंद थां सूं गुण कियो, भावै जाण म जाण।
पाणी पैदा पूतळो, कियो तपावत छाण।
जतन बणाया जीवरा, बांध्या सास निसाण।
सिर ऊपर जंवरो भंवै, उमटिया केकांण।
पाछै बार न आवसी, हुवै पिलाण पिलाण।
जळ बरसै डूंगर झुरै, आवै नीर निवार।
तिल किरसाणी नीपजै, तेली चूरै घाण।
तिणरै बाजा बाजता, नित घुरता नीसाण।
पाट पटंबर ओढता, करता राणो राण।
चिट्ठी आयां उठ चल्या, रति न कियो ताण।
पीळै पाटे पळटिया, मेल्या जंगळ आण।
सूकै काठ बनास्ती, ऊपर हुवै हुवाण।
पुळ दीजै सिर नावड़्या, लाट लिया खळियाण।
पुरै गुरु रै दाखिया, ‘देवो’ करै बखाण॥