पुरी पसार कानजी बैठा, बोलै इमरत वाणी।

आंख्यां रो ओळींदो तजियो, तजियो अन्न’र पाणी।

कानजी म्हारा रूड़ा’क राजा, रूड़ै का’न री डाणी।

कंठड़ली म्हारै गळै विलूंबी, तड़कण तूटै ताणी।

तट जमना पाणीनै चाल्या, आडा कान’जी डाणी।

कंवर का’नजी कद रा डाणी, म्हे हालां मन री जाणी।

त्रिया आळ लीजै का’नजी, कंस राजा जाणी।

क्रिसन घटा ले ओलर आया, सावण लूम हलाणी।

भर भादूड़ै बरसण लागा, रुखमण बीज खिंवाणी।

का’नजी म्हारा रूड़ा’क राजा, रूड़ै का’न री डाणी।

माथै मैमंद चीर विराजै, कांचवै गळ हार विराजै,

पग नेवर ठमकाणी।

का’न सरिसा ठाकुर सेवो, इमरत नांव धणी रो मेवो।

गुरु परसाद भणै ‘सिध देवो’।

का’नजी म्हारा रूड़ा’क राजा, रूड़ै का’न री डाणी॥

स्रोत
  • पोथी : मरु-भारती (त्रैमासिक) जनवरी ,
  • सिरजक : सिद्ध देवोजी के सबद : सूर्यशंकर पारीक ,
  • संपादक : बसंतलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिड़ला एजूकेशन ट्रस्ट, पिलानी (राजस्थान)
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