अलख लिख्या कोई लेख जाणै, कुण जाणै कायम रा पार।

कितरां चिळतां ईसर खेलै, जोत सरूपी जुग दातार।

करड़ो पंथ कै’र कठिनाई, से सेवै से जाणै सार।

हरजी गिंवर किया गाडर सूं, आप चढ़ावै हुवै असवार।

पै’लां धवळो कांध सैतो, घर घूनो हुयो सिकदार।

पांच मणा पग पाछो पड़तो, किरोड़ मणां कै जूत्यो भार।

सीपां मोती निज नीपजता, तुसमें रतन कियो विसतार।

गिरम्यां पून तिसायां पाणी, हर सूं लाग्यो हेत पियार।

ज्यूं जळ डोवै ज्यूं मन मोवै, सांस-सांस में सौ-सौ बार।

जळ में मीन उदक में बासो, कै’वै पियो कद जाणै सार।

गै’रो पेड़ सैंस पर डाळा, जड़ बिन बिरछ कियो विस्तार।

जिण री छाया कीड़ी सैंती, लसकर उतरियो अणत अपार।

माखी घिरत सेर भर पीयो, सुसियो चढ्यो सिंघारी लार।

सुसियै पेट सिंघारो वासो, चूक्यो डाणज लीनो मार।

तरगस तीर सेल बिन सींगी, गोळी गैबरी लीनो मार।

से जूझै हरिहर नै बूझै, सांस-सांस साचा सुचियार।

गुरु परताप ‘देवो’ सिध बोलै, साथै गावै करै विचार॥

स्रोत
  • पोथी : मरु-भारती (त्रैमासिक) जनवरी ,
  • सिरजक : सिद्ध देवोजी के सबद : सूर्यशंकर पारीक ,
  • संपादक : बसंतलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिड़ला एजूकेशन ट्रस्ट, पिलानी (राजस्थान)
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