मेरे लालन हो, दरस द्यो क्यूँ नांही।
जैसे जल बिन मीन तलपै, यूँ हूँ तेरे तांई॥
बिन देख्यूँ तन तालावेली, विरहनि बारहमासी।
दिल मेरी का दरद पियारे, तुम्ह मिलियां तैं जासी॥
रैणि निरासी होइ छै मासी, तारा गिणत बिहासी।
दिन बिरहनि कूँ बाट तुम्हारी, सदा उडीकत जासी॥
जल थल देखूँ परवत पेखूँ बन बन फिरों उदासी।
बूझो कोई उहां थै आया, ठावा मोहि बतासी॥
फिरि फिरि सबै सयाने बूझे, हों तो आस पियासी।
बखना कहै कहो क्यूँ नांही, कब साहिब घर आसी॥