बंदे अधर बेड़ा चलत वे।

साँच मान सुगंध साहब नहीं करिया लगत वे॥

अधर पुहमी अधर छिः गिरवर अधर सरबर ताल वे।

अधर नदियाँ बहत वे जहँ अधर हीरे लाल वे॥

अधर नौका अधर खेवट अधर पानी पवन वे।

अधर चंदा अघर सूरज अधर चौदह भुवन वे॥

अधर बागं अधर बेलं अधर कूप तलाब वे।

अधर माली कुहकता है अधर फूल खिलाव वे॥

अधर बँगला अधर डेवढ़ी अधर साहब आप वे।

अधर पुर गढ़ हूंट नगरी नाभि नासा माथ वे॥

हूंठ हाथ हज़ूर हासिल अधर पर इक अधर वे।

ग़रीबदास अधर ध्यानी ओढ़ि एकै चदर वे॥

स्रोत
  • पोथी : हिंदी संतकाव्य-संग्रह ,
  • सिरजक : ग़रीबदास ,
  • संपादक : गणेशप्रसाद द्विवेदी ,
  • प्रकाशक : हिंदुस्तानी एकेडेमी ,
  • संस्करण : प्रथम
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