लाल लंगोट हद बण्या, मुख में नागर पान।
लंका में बन्दर चलै, अंजनी सुत हनुमान॥

(टेर)

हनुमान बलवान, काज रघुवर का सार्‌या है।

(सिधांत)

बड़े राम के दूत, अंजनी पूत, मुद्रिका लीनी।
लंकापुरी जाऊं चाल, सूरत धर दीनी।
मन में हरख है जबर, लाऊंगा खबर, लंक रंग भीनी।
जहां रहती सीता मात, दुष्ट हर लीनी।

(मधचोक)

माता की खबर लाऊंगा, ना मैं जाता शर्माऊंगा।
गुण रघुबर का गाऊंगा, बल अपना अजमाऊंगा॥

(संगीत)

सौ योजन मरियाद सिन्धु की, देख्या है जब ध्यान लगाय।
खळहळ नीर देख्या सिन्धु का, देख्या जीव जाता डरपाय।
तिर के पवन-पुत्र बलकारी, पर्बत दियो पाताल खिनाय।
दुष्टा अेक रहती सिन्धु में, उड़ता नभचर देती गिराय।
हनुमान की छायां पकड़ी, दे मुक्का दिया प्राण गमाय।
अब पहुँच्यो है समद किनारै, लंकपुरी नै देखी जाय।
सोनै की गढ़ लंका बंका, चौतरफी बन्या है नीर।
राखसां का पहरा लागै, हाथ में धनुष तीर।
मल्ल जो अखाड़ा जीतै, बड़े-बड़े सूर वीर।
सुन्दर-सुन्दर देख्या बाग, बागां बिच हरियाळी।
चम्पा हीना मोगरा फिर, केतकी की झुकी डाळी।
भंवरा गुन्जार करै, सींच रयो क्यार माली जी।

(उठत)

जिनका रावण है महिपाल, देख लिया हाल, खड़ा जब लंक किनारा है।

(संगीत)

बन्दर जो भूप, धर छोटा रूप, शोभा अनूप, जांकी बरनी।
दिन रहा ना शेष, किया प्रवेश, बन्दर नरेश, की सुध करनी।
द्वारे की ओर, राखसी घोर, लंका के चोर को नित चरनी।
दिया मुक्का मार, हो गई लाचार, बही रुधिर-धार, गिर गई धरनी।
जब हुआ ज्ञान, गई कहना मान, तुम हो हनुमान, शोभा बरनी।
तुम सिध करो, थारा काज सरो, सब दुष्ट मरो, लंका जरनी।
हनुमान लंका प्रवेश कर, धीरै-धीरै चल ध्याया।
अजब महल देख्या रावण का, उसी महल में चला आया।
बीस भुजा और दस मस्तक है, रावण बली सुता पाया।
सीया मात को नहीं देखी, वहां कुम्भकर्ण की थी माया।
कोस च्यार में मूंछ पड़ी है, कुम्भकर्ण सुता पाया।
फिरता-फिरता महावीर, विभीषण का देख्या धाम।
हरि का भक्त था वो, रट रहा राम-राम।
बजरंगी विचारी मेरा, सिध होगा आज काम।
हाथ जोड़ कहने लाग्या, देखी चाहूं सीया मात।
भेद जो बखाण करके, भेज दिया उसी स्यात।
माता का दर्शन करके, हर्ष रहा है जी गात।

(उठत)

दुर्बल देख शरीर, नैन बहे नीर, क्रोध हियै होता भारा है।

(संगीत)

रावण से अभिमानी दाना, चाल रात आधी आया।
मन्दोदर सी रानी स्यानी, संग में लेके गरभाया।
अेक बर मेरी और बिलोको, सफल होय जग में काया।
जनकनन्दनी कहने लागी, यह बचन जब फरमाया।
सुण रावण अज्ञानी बानी, काळ शीश तेरै छाया।
अेक दिन रोवै नार मन्दोदरी, बान्दर लूटै धन-माया।
सोनै की गढ लंका चली ज्या, खार-समद सूखा पाया।
इतना बचन सुण्या रावण ने, काढ खड़ग मारण धाया।
मन्दोदरी ने खड़ग पकड़ के, रावण को जब समझाया।
जगत-पिता जो राम को जानो, सियाराम की है माया।
अेक मास की म्याद घाल के, रावण उल्टा घर आया।
रावण उल्टा घर आया, सिया मन भई पीर।
उझल्यो दरियाव दिल से, नैणा बीच बहे नीर।
कौनसा जतन करूं, आया नहीं रघुवीर।
अशोक का दरखत जरा, करदे मेरी प्रतिपाल।
काया ने भस्म कर दूं, अग्नि ऊपर से डाल।
इतना बचन सुनके, अंजनी के जी हंसे लाल।

(उठत)

हो मन में हुंशियार, लगाई ना बार, गोद में मुन्दड़ी डारी है।

(चौपाई)

देखि मुद्रीका अति ही मनोहर,
राम नाम अंकित अति सुन्दर।
जीत कोऊ सके ना अजय है रघुराई,
माया से या रचिय न जाई।
सीता मन में बिचार करै नाना,
मधुर बचन बोलै हनुमाना॥

(संगीत)

हाथ जोड़ के बजरंग बोल्या, सुनो मात मेरी चित्त लगाय।
जल्दी रामचन्द्र आवैंगे, ल्यावै अपनी फौज सजाय।
लंका-गढ़ को तोड़ मात फिर, रावण को दे गरद मिलाय।
अभी मात मैं तुझे ले जाऊं, इसमें झूठ समझियो नाय।
लंका तोड़ सागर में गेर दूं, रावण की ल्यूं मसक चढ़ाय।
इतना काम करूं ना डरता, तव प्रताप सुन सीता माय।
जनकनन्दनी कहने लागी, सुन बेटा मेरी चित्त लगाय।
यहाँ का दाना बहुत जबर है, सारा जगत रहा घबराय।
पवन भुवारी दे लंका में, मृत्यु पड़ी कुवै कै मांय।
इन्द्र रोज यहाँ भरै हाजरी, मेघ रोज जळ भरके जाय।
तू छोटा सा बान्दर दिखै, यहाँ से जीवता कैसे जाय।
अब क्या जतन करूं मैं तेरा, चिन्ता भई बदन कै मांय।
इतना बचन सुण्या माता का, निज-स्वरूप जब दिया दिखाय।
सोनै का सुमेर गिरी, नैन हो गया लाल-लाल।
भयंकर रूप देख्या, राखसां का देख्या काल।
लंका के सम्मुख चाल्या, कभी ना करेगा टाळ।
अेसा रूप देख्या जब, सिया मन आई धीर।
पास बुलाकर कहणे लागी, धन-धन महावीर।
सब गुण बसो तोपे, कृपा करे रघुवीर जी॥

(उठत)

देख सुन्दर फळ रूंख, लगी मनै भूख, मौसमी केळा न्यारा है।

(संगीत)

माता की आज्ञा ले चल्यो बाग में, अछा-अछा फळ खाया।
आम संतरा और नारंगी, जाम मौसमी मन भाया।
सारा बाग लगा दिया मुन्दा, सुरड़ बाग सब फळ खाया।
रखवाला जब बरजण लाग्या, पड़ी मार व्याकुल काया।
दुतां जाय कही रावण से, बान्दर अेक जबर आया।
सारा बाग लगा दिया मुन्दा, सुरड़ बाग सब फळ खाया।
इतना बचन सुण्या रावण ने, अक्षय कुमार को पठवाया।
ताड़ वृक्ष को उपाड़ बली ने, अक्षय कुमार पै छिटकाया।
पड़ी मार जब मुरछित हो गया, बिकल भई जाकी काया।
दुतां जाय कही रावण से, अक्षय कुमार मुक्ति पाया।
होके भयभीत, सुन इन्द्रजीत, अब बन्दर मीत, पकड़ो जाई।
ल्यावो पकड़, काडुंगा अकड़, और करड़ी जकड़, देवो लगवाई।
चल्यो मेघनाथ, ले सेन साथ, उसी स्यात, पहुंच्या आई।
मेघनाथ का बाण चाल्या, छुटण लाग्या सर र र।
हनुमान ने किलकारी मारी, होने लागी कर र र।
मेघनाथ के मुक्का मार्‌या, धरणी पड़ गयो डर र र।
राखसां का प्राण पंछी, उडणे लाग्या भर र र।
दुनियां में सरणाटो माच्यो, रटणै लाग्या हर र र जी।

(उठत)

उठा जो मेघनाथ, बाण लियो हाथ, बाण ब्रह्मकपि के मारा है।

(सिधांत)

वो थी ब्रह्मा की फांस, हरि का दास, पकड़ बलदाई।
कर मन में अहंकार, सभा सुध लाई।
जहां बैठा था दस शीश, भुजा थी बीस, रीस तन छाई।
ओ बान्दर अज्ञान, मौत तेरी आई।

(मधचोक)

तेरा तपस्वी कब आवैगा, तेरा आज प्राण जावैगा।
मूरख तूं पछतावैगा, फळ करणी का पावैगा।

(संगीत)

फल करणी का पाऊं रावण, सत्य रावण बोला बाणी।
सीता मात को हरके लाया, डूब गया तूं बिना पाणी।
शेश शीश पै धरा धरी है, जांका बल सुण अभिमानी।
थोड़ा सा, बल तेरै में आ गया, जीती जग लई रजधानी।
जिस समुद्र का जोर करै तूं, नहीं बूंद दिखै पाणी।
इतना बचन सुण्या रावण ने, काढ खड़ग मारण ध्याया।
रावण को समझावण कारण, सभा चाल विभीषण आया।
नीति विरोध करै नां राजा, नहीं दूत मारना बतलाया।
इतना बचन सुण्या रावण ने, तेल रूई जब मंगवाया।
तेल रूई का मेळ मिला के, पुंछ के अग्नि देई लगाय।
उठी लाट अग्नि की धक-धक, धक-धक करै लंक में जाय।
फक-फक करता धूंवा फक फके जळ-जळ कर लंका जळ जाय।
भागी नार लाचार होय के, जब अग्नि की देखी लाट।
सोनै का जहां महल जळे है, सोनै की जळती है खाट।
ऊंट भैंस खचर अर घोड़ा, चरती बकरी मर गई टाट।
दूजी सभा रावण की जळ गई, राज तखत और जळ गया कोट।
राखसण्यां का जळ्या चोटला, दानवां का सब जळ गया होट।
कितना हाहाकार पुकारे, कितना गया धरत में लोट।
कितना भाग गया लंका से, कितना दिल का त्यागा खोट।
सन न न न न न न, हवा चाली सनकार।
धप-धप धप-धप, अग्नि बिच धपकार।
गुणचास पवन जब, बहने लागी इकसार।
जळ-जळ जळकर, राखसां की हो गई छार।

(उठत)

दीनी लंक जळाय, हंस्यो किलकाय, ध्यान सियाबर का धारा है।

(संगीत)

काल बुला के रावण बोल्या, जावो कपि नै ल्यावो मार।
काल चाल जब पास गया, महावीर लीयो मुखड़ै में धार।
देवता आय करी बिनती जब, मुख से पाछो दियो निकार।
मेघ बुला के रावण बोल्या, तुम जा बरसो जळ की धार।
मेघ चाल जब पास गया, महावीर पूंछ की मारी मार।
भगे मेघ अब कायर होके, अब रावण हो गयो लाचार।
उलट पुलट कर लंका जारी, घर भक्तों का लिया उबार।
अब पहुंच्यो है समद किनारै, पुंछ बुझाई हो हुंसियार।
सियामात के गयो बाग में, पड़्यो चरण में बारम्बार।
चूड़ामणी को लेकर ध्याया, सियामात को धरके ध्यान।
गऊ खोज ज्यों समद उल्हंग गयो, सौ योजन पाणी प्रमाण।
जामवन्त अंगद संग लेकर, पहुंच गया जहां था भगवान।
रावण की गढ़ लंका बंका, देख आयो सियामात।
चरना में लगाया ध्यान, रट रही सुरतात।
सैना को सजाय करके, जल्दी चलो रघुनाथ।
सुनके बचन रघुनाथ ने हर्ष किया।
सोहण अठारा दल, सभी को हुकम दिया।
पीथाराम कथ गावै, प्रभुजी का शरणा लिया।
अणतुराम प्रेम सेती, धाप के अमृत पीया।

(उठत)

चली है सैना निशंक, धूजी गढ़ लंक, समुद्र पर डेरा डारा है।

बली हनुमान बलवान काज रघुवर का सार्‌या है।

स्रोत
  • पोथी : श्री अणतुराम नवीन भजन संग्रह ,
  • संपादक : श्री सीताराम महर्षि
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