परभाते परमेसर सिंवरो, आळस नींद निवारो।
पै’ली नांव धणी रो लीजै, पीछै काम सुंवारो।
पाणी री पुळ बांध पिराणी, ऊपर बण्यो असवारो।
चेजै में कोई चूक न राखी, खूब बण्यो चेजारो।
मा’ळक मैड़ी गढ़ दरवाजा, हाट पटन बेजारो।
कांसी थाळ पखावत बाजै, संख झालर झिणकारो।
ताप तळातळ तेल ज मांहि, धरमी कियो पिसारो।
धरम करो किन्या परणावो, सुरगां पोंचणहारो।
धरम कियोड़ा आडा आसी, विखमी पोळ दुवारो।
सूरज देव दुनी में ऊगा, उणनै जपो सुवारो।
पिछम गयां हुवै अंधियारो, आवागिवण निवारो।
जिवड़ा उठ अब चेजै लागो, सूता कां पांव पसारो।
गुरु परसाद भणै ‘सिध देवो’ ओलै राख उबारो॥