कितरां चिलतां ईसर खेलै, कण कण करी सजाई।
दीन बडो दुनियां रो दाता, श्याम बडो सुनियाई।
तिरभण तारण आप निरजंण, स्वामी हरख हरख गुण गाई।
गुरु जसनाथ पिता कर मानो, सिंवर सती निज माई।
जळ सूं जोग संजोग रचाया, जीया जूण सवाई।
पै’ली करी पिरथमी पैदा, नौ निध पछै उपाई।
नौ निध नाथ सिस्टनै सौंपी, आप न राखी राई।
अरथ गरथ दुनी आप ही विलसै, हरिनै ठालै हाथ ठगाई।
पिसर पिसर दुनियांनै वासो, वासो, श्याम बसण संकड़ाई।
मांगण हुय जगत में माल्या, घर इसड़ी निलियाई।
पून सरिसा पहुं पिलाण्या, सावक सला बणाई।
एकै हुकम करी इकरंजी, फेरी आण दुहाई।
नौखंड इंद पलक में रेळै, घर इसड़ी ठुकराई।
इण गुरु रै कोई जोर न जरबो, कोट नहीं कोई खाई।
सैसूं जीव सेकण रीछा, घर इसड़ी जतनाई।
गुरु परसाद भणै ‘सिध देवो’, लो उण गुरु री सरणाई॥