हर-हर नांव जपो मन भाई
हर सिंवरतां बार न लाई
अथवा ऊमर ओछी आई
चिट्ठी री आई चौथाई
नर कांई रच्यो भोम पराई
थिर न रै’णा होय चढाई
मूरख कहै माया मोरी
काया होय भसम री ढेरी
ओघट घाट जमांरी घेरी
सूई रै नाकै संकट सेरी
मात पिता सुत चेरा-चेरी
तात न बूझै प्राणियां तेरी
खर कांई बांध्यो तुरी तबेलै
पात उड कांईं परबत पेलै
अंजळी रो नीर समंद कांईं रेलै
माखी घृत प्यालां कांईं झेलै
सुसियो आळ सींगां कांईं खेलै
अै आरख अै उनमाना
कांईं थे गरब करो गहमाना
मस्तक बोझ घणी भूं जाणां
साथै लीजै सतगुरु स्याणा
भूं भारी है दूर पयाणा
पूंजी बांध परम गुरु नाणा
‘देवोजी’ गावै गुरु रो दास
भो-भो प्रभु तिमीणी आस।