भगवत बीखो आपरी मरजी, मैं दुख भुगत्यो सारो।
मैं विखियारी फिरूं बन मांही, चाकर चोर तमारो।
इण कूमट किरतार पधार्या, ऊग्यो सूर सुवारो।
गूंद चुगंता गोरख मिलिया, भाग्यो घोर अंधारो।
काया पातक भो-भो झड़िया, दरसण हुयो धण्यांरो।
बांह पिसार मिल्या बाबोजी, जद मुख दीठो थारो।
रंग महल रा आप राजेसर, ह्यां क्यूं आप पधारो।
आप चढ्या हस्ती रै होदै, जद जी डरप्यो म्हारो।
जाट जमारो बिखमी बिळियां, मैं दुख भुगत्यो सारो।
पांच कोस रो पैंडो करतो, सिर लकड़्यां रो भारो।
पांव पिसार पीसणों करतो, भळ बणतो मैं पिणिहारो।
बीती बात ‘देवो सिध’ बोलै, गरब करो नीं गिंवारो॥