मैं तो अमर देस री वासी।

राम करदी मेहर मो पे, नहीं जाऊंली काशी।

हिरदे मांहि ग्यान हुग्यो, राम ज्यों परकासी।

एकहि ज्योति झलके अब तो, नहीं रहूं उदासी।

अमर देस में आसण करिया, छूटगी गल पासी।

परमानंद परकास सूं, सगली माया नासी।

फूली आतम राम पाया, ना आसी ना जासी॥

स्रोत
  • पोथी : जाटों की गौरव गाथा ,
  • सिरजक : फूलीबाई ,
  • संपादक : प्रो. पेमाराम, डॉ. विक्रमादित्य ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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