हंस बटाऊ काया बिड़ाणी, बिड़ दोन्यां वास वसाया।

बटाऊ ज्यूं मेळै मिलिया, को नर कांसूं आया।

हंसलो चूण चुगै मोत्यां री, बोलै सबद सुवाया।

भरियै सरवर हंसलो बैठो, कुबधी काग उडाया।

काग कुपंछी लवै कुवेणो, कितरा कूड़ कमाया।

नगरी रो नाथ नचीतो सूतो, अब जम हेरु आया।

बिन गोळी बिन नाळ पलीतै, सगळा सै’र उठाया।

पकड़ी सांग हुयो पसवाड़ै, सिंवरण सेल संमाया।

साजी पोळ सज्या दरवाजा, ऊपर सेरी आया।

जळ मळ जाळ महीजळ पाणी, दूर गया पिछताया।

बळती झाळ जळता थांभा, भेट्या नर करळाया।

गुरु परसाद कहै सिध देवो, दाखिया जस गाथा॥

स्रोत
  • पोथी : मरु-भारती (त्रैमासिक) जनवरी ,
  • सिरजक : सिद्ध देवोजी के सबद : सूर्यशंकर पारीक ,
  • संपादक : बसंतलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिड़ला एजूकेशन ट्रस्ट, पिलानी (राजस्थान)
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