गुरु रूप तणौं दरबार, होरी रची सुखकारी।

राम रंग में रूप रंगे हैं हरि के हैं हितकारी।

सुरती सबद की होरी खेलै, लगी उनमनी तारी॥

तरक त्याग वैराग जना को, दसा विदेही धारी।

राम नाम जपि कारज कीया, पांँचू इंद्री हारी॥

सील संतोष दया की केसरि, धीरज होद में गारी।

पेम पिचकारी भर-भर बाह्वै, सब सन्तन पर मारी॥

दया धरम सिर पाव बनाए, ग्यान गुलाल विचारी।

पाँच पचीस नारि बस करकै, इन सबहिन परि डारी॥

मन कूँ मारि मनोरथ मारै, तिरगुण पास निकारी।

आसा चितवन चिंता चेरी, सबहिन संग जारी॥

ऐसी होरी सतगुरु खेलै, सुणज्यो सब हितकारी।

आत्माराम जनां की संगति, भव तिरिहैं नर नारी॥

स्रोत
  • पोथी : स्वामी श्री रूपदासजी 'अवधूत' की अनुभव - वाणी ,
  • संपादक : ब्रजेन्द कुमार सिंहल ,
  • प्रकाशक : संत उत्तमाराम कोमलराम 'रामस्नेही' रामद्वारा, इंद्रगढ़ -कोटा (राजस्थान) ,
  • संस्करण : प्रथम
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